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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

3. डॉ0 नगेन्द्र : मेरी साहित्यिक मान्यताएँ

प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।

अथवा
डॉ0 नगेन्द्र की आलोचनात्मक दृष्टि 'मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" की समीक्षा कीजिए।

उत्तर -

डॉ0 नगेन्द्र संस्कृत काव्यशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान तो हैं ही उनके ऊपर आई0ए0 रिचर्ड्स और बेनेदेंतो क्रोचे जैसे पाश्चात्य आलोचकों का विशेष प्रभाव है, वे अंग्रेजी साहित्य में भी एम0ए0 हैं, उन्होंने हिन्दी साहित्य के वैभव को अंग्रेजी भाषा के माध्यम से प्रचारित करने के उद्देश्य से भी कई ग्रन्थो के सम्पादन किया है जिनमें तुलसी और सूर पर ग्रन्थ तो है ही नाटक, आलोचना, कहानी आदि पर भी पुस्तकें हैं, वे एक आलोचक, अन्वेषक, सम्पादक, अनुवादक, निबंधकार और कोशकार आदि कई रूपों में हमारे सामने आते हैं किन्तु एक आलोचक के रूप में निर्मित उनका व्यक्तित्व सर्वाधिक प्रभावशाली है।

डॉ0 नगेन्द्र ने 'आलोचक की आस्था' निबन्ध संग्रह में प्रथम तीन निबंधों के अन्तर्गत अपनी साहित्य मान्यताओं को स्पष्ट किया है। साहित्य का स्वरूप, उसका प्रयोजन, उसमें अन्तर्निहित मूल्य, उसके तत्त्व और उपादान, अनुभूति और अभिव्यक्ति का सम्बन्ध, उसमें निहित सत्य युग बद्धता और युग मुक्तता आदि प्रश्नों का समाधान डॉ नगेन्द्र ने अत्यन्त स्पष्ट और सुलझे हुए रूप में किया है। डॉ0 नगेन्द्र, साहित्य को मूलतः आत्माभिव्यक्ति मानते हैं, उनकी दृष्टि में रचनाकार के व्यक्तित्व का कृति में प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रतिफलन आत्माभिव्यक्ति का ही एक प्रकार है, वे मानते हैं कि, “सौन्दर्य कोई निरपेक्ष वस्तु नहीं है उसका निर्माण भी तो कलाकार की अपनी भावनाओं और धारणाओं के आधार पर ही होता डॉ0 नगेन्द्र आनंद को ही काव्य का आत्यंतिक प्रयोजन मानते हैं, आनंद के समानान्तर वे लोक कल्याण और चेतना के संस्कार इन दो प्रयोजनों को भी विचारणीय मानते हैं किन्तु उनकी दृष्टि में ये दोनों भी आत्यंतिक प्रयोजन नहीं हो सकते "लोकहित को प्रयोजन मानकर चलने वाला साहित्यकार लोक में अपने स्व का विस्तार करके आनंद लाभ ही करता है. इसी प्रकार चेतना के परिष्कार की परिणति भी आनंद की अनुभूति में ही होती है, इसलिए लोक कल्याण और चेतना का परिष्कार आनंद की उपलब्धि में बाधक नहीं होते, अपने समय की कविता के बारे में डॉ नगेन्द्र की धारणा है, "छन्द कविता नहीं है, यह मान्यता प्रायः आरम्भ से ही रही है, बिम्ब मात्र कविता के लिए पर्याप्त है, बात यहीं रूक जाती तब भी ठीक था पर वह तो और आगे बढ़ गई है, कविता अर्थ भी नहीं है, कविता, कविता भी नहीं है - कविता अकविता है, ये सब आस्थाहीन चिन्तन के चमत्कार हैं जो बाल मनोवृत्ति के लोगों की ही आकृष्ट कर सकते हैं।

डॉ0 नगेन्द्र ने अपनी प्रथम आलोचनात्मक कृति 'सुमित्रानंदन पंत' के प्रकाशन के साथ ही हिन्दी आलोचना जगत में अपनी खास पहचान बना ली थी, इस पुस्तक की सराहना आचार्य रामचन्द्र शुल्क ने भी की थी, उन्होंने लिखा, "काव्य की छायावाद कही जाने वाली शाखा चले काफी दिन हुए, पर ऐसी कोई समीक्षा - पुस्तक देखने में न आई जिसमें उक्त शाखा की रचना प्रक्रिया प्रसार की भिन्न- भिन्न भूमियाँ सोच समझकर निर्दिष्ट की गई हों, केवल प्रो0 नगेन्द्र की 'सुमित्रानंदन पंत' पुस्तक ही ठिकाने की मिली है।

नगेन्द्र जी की यह कृति उनकी व्यावहारिक आलोचना का पहला उदाहरण है, इसमें उन्होंने सबसे पहले छायावाद के महत्व और उसकी सीमा का निर्धारण किया है, इसके बाद पन्त जी के भाव जगत् और उनकी विचारधारा तथा उनकी काव्य कला का अनुशीलन किया है, इस कृति के उत्तरार्ध में- जो बाद में जोड़ा गया है, उन्होंने पन्त जी की परवर्ती कृतियों की समीक्षा भी की है, छायावाद को उन्होंने 'स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह' कहकर सबका ध्यान आकृष्ट किया था। इतना ही नहीं, इस विद्रोह को भी उन्होंने बहुत व्यापक आधार दिया। इसे वे उपयोगिता के विरूद्ध भावुकता का विद्रोह, काव्य के बंधनों के विरूद्ध स्वच्छंद कल्पना का विद्रोह और आभिजात्य काव्य परम्परा के विरूद्ध रोमानी काव्य संवेदना के रूप में विश्लेषित किया है। इसी तरह उन्होंने प्रगतिवाद को सूक्ष्म के प्रति स्थूल का विद्रोह कहा। उन्होंने लिखा है, " स्थूल ने एक बार फिर सूक्ष्म के विरूद्ध विद्रोह किया, यह प्रतिक्रिया दो रूपों में व्यक्त हुई एक तो छायावाद की पलायन वृत्ति के विरूद्ध, दूसरी उसकी अमूर्त- उपासना के विरूद्ध 33 इन्हीं दोनों प्रवृत्तियों का सम्मिलित रूप आज प्रगतिवाद के नाम से पुकारा जाता है।

डॉ0 नगेन्द्र ने पन्त के अलावा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, रवीन्द्रनाथ टैगोर, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, निराला, हाली, राहुल सांकृत्यायन, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, महादेवी वर्मा, बालकृष्ण शर्मा नवीन, सियारामशरण गुप्त, दिनकर, बच्चन, अज्ञेय, गिरिजा कुमार माथुर आदि की अनेक कृतियों की व्यावहारिक समीक्षाएँ की हैं, उनकी समीक्षा प्रामाणिक, विश्वसनीय और पूर्वाग्रह रहित हैं।

इस प्रकार डॉ0 नगेन्द्र ने एक ओर हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियों, सिद्धान्तों, वादों, रचनाकारों और उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियों पर आलोचनात्मक निबन्ध लिखे तो दूसरी ओर 'रीति काव्य की भूमिका' तथा 'देव और उनकी कविता' लिखकर रीतिकालीन साहित्य के मूल्यांकन का भी सफल प्रयास किया। इसके अलावा उनके आलोचना कर्म का महत्त्वपूर्ण पक्ष उनका 'रस सिद्धान्त' नामक ग्रन्थ है जो उनकी अनुसंधानपरक आलोचना का उत्कृष्ट उदाहरण है। ऐसी दशा में डॉ0 नगेन्द्र को किसी विशेष आलोचना की कोटि में रखना कठिन है। रस सिद्धान्त की विस्तृत व्याख्या करके उन्होंने भारतीय काव्यशास्त्र की परम्परा में आस्था व्यक्त की है और आचार्य रामचंद्र शुक्ल के प्रभाव को सहर्ष स्वीकार किया है। डॉ रामचंद्र तिवारी के शब्दों में रस को यह व्याप्ति देकर डॉ0 नगेन्द्र ने उसे प्राचीन एवं नवीन, भारतीय एवं पाश्चात्य, सभी काव्य-कृतियों के मूल्यांकन की शक्ति प्रदान कर दी है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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